वेद मंत्र परमात्मा की श्वास और प्रश्वास हैं, प्रत्येक मंत्र के एक देवता हैं, मन्त्रोच्चार से वे देवता जागृत हो जाते हैं। कभी घर-घर मन्त्रोच्चार होता था और हर घर में देवताओं का वास रहता था। इन वैदिक मंत्रों को महान ऋषियों-मुनियों और विद्वानों ने कण्ठस्थ कर वर्तमान समय तक सुरक्षित रखा। अब विश्व हिन्दू परिषद तथा अशोक सिंहल फाउण्डेशन के कार्यकर्ताओं द्वारा 6 दिन का चतुर्वेद स्वाहाकार महायज्ञ दिनाँक 9 अक्टूबर सायंकाल 5.00 बजे से 14 अक्टूबर, 2019 दोपहर 12.00 बजे तक 16 वेद कंठस्थ विद्वानों द्वारा श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर) दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है। चतुर्वेद स्वाहाकार महायज्ञ में 29,500 वेद मन्त्रों से आहुतियाँ होंगी।
वेद मंत्र परमात्मा की श्वास और प्रश्वास हैं, प्रत्येक मंत्र के एक देवता हैं, मन्त्रोच्चार से वे देवता जागृत हो जाते हैं। कभी घर-घर मन्त्रोच्चार होता था और हर घर में देवताओं का वास रहता था। इन वैदिक मंत्रों को महान ऋषियों-मुनियों और विद्वानों ने कण्ठस्थ कर वर्तमान समय तक सुरक्षित रखा। अब विश्व हिन्दू परिषद तथा अशोक सिंहल फाउण्डेशन के कार्यकर्ताओं द्वारा 6 दिन का चतुर्वेद स्वाहाकार महायज्ञ दिनाँक 9 अक्टूबर सायंकाल 5.00 बजे से 14 अक्टूबर, 2019 दोपहर 12.00 बजे तक 16 वेद कंठस्थ विद्वानों द्वारा श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर) दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है। चतुर्वेद स्वाहाकार महायज्ञ में 29,500 वेद मन्त्रों से आहुतियाँ होंगी।
वेद विश्व के लगभग सबसे प्राचीन साहित्य हैं। वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोपरि धार्मिक साहित्य हैं। ऐसा माना जाता है कि वेदों के आधार पर ही विश्व के अन्य धर्मों की उत्पत्ति हुई, जिन्होंने वेदों के ज्ञान को अपने-अपने तरीके से भिन्न-भिन्न भाषा में प्रचारित किया। वेद शब्द संस्कृत के ‘‘विद’’ क्रिया शब्द से निर्मित है अर्थात् इस मात्र एक शब्द में ही सभी प्रकार का ज्ञान समाहित है। प्राचीन भारतीय ऋषि जिन्हे मन्त्रदृष्टा कहा गया है, उन्होंने ध्यान के माध्यम से रहस्यमय सनातन सत्यों को समझकर उस परिपूर्ण ज्ञान को आत्म विश्लेषण द्वारा प्राप्त करने के बाद उस ज्ञान को साहित्य रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। यह अति प्राचीन साहित्य ही ‘वेद’ के नाम से विख्यात है। एक ऐसी भी मान्यता है कि इन मंत्रों को भगवान ने प्राचीन ऋषियों को सुनाया था, इसलिए वेदों को ‘‘श्रुति’’ भी कहा जाता है।
अनेक शताब्दियों से मौखिक पठन करते रहने के कारण ‘वेद’ मानव सभ्यता के प्रथम दस्तावेज माने जाते हैं। वेदों की 29 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के भण्डारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय हैं कि यूनेस्को की 158 पांडुलिपियों की सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों का क्रम 38वां है।
वेद चार हैं, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्य वेद, ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बताये गये हैं। ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गतिशील और अथर्व-स्थिर। ऋग को धर्म, यजु को मोक्ष, साम को काम और अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्हीं के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।
ऋग्वेद - सूक्ष्म से सब पदार्थों का सम्पूर्ण विज्ञान तक ऋग्वेद के 10,522 मंत्रों से मिलता है। इस वेद की पाँच शाखा हैं। शाकल, बसकल, अश्वलायन, शांख्यायन, माँडूक्यायन। भूगोल विज्ञान, रेखांश तथा अक्षांश का स्थान के साथ देवताओं को आह्वान करने का मंत्र और अन्य महत्वपूर्ण विज्ञान इस वेद में है। ऋग्वेद के सूक्तों में देवताओं का वर्णन, स्तुति, देवलोक में इन देवताओं का स्थान आदि का विवरण है। साथ में जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सूर्यकिरण चिकित्सा, मानव चिकित्सा और हवन के माध्यम से चिकित्सा का भी विवरण मिलता है। दसवें खण्ड में चिकित्सा के विषय में बताने वाले सूक्तों को ‘‘औषधि सूक्त’’ के नाम से लिखा गया है। 125 प्रकार की दवाओं का विवरण इस वेद में 107 जगह है। इसमें सोमरस का विवरण और च्यवन ऋषि को बुढ़ापे से यौवन प्राप्ति की कथा भी है।
यजुर्वेद - यजुर्वेद में 1,975 मंत्र हैं। इस वेद में पूरे वैदिक कार्यक्रमों का
विवरण तथा विधि-विधान का वर्णन है। यजुस का अर्थ है देवताओं को पूजा-अर्चना के द्वारा संतुष्ट करना
और गतिशील भी। इसके साथ-साथ यज्ञों में प्रयोग किये जाने वाले मंत्रों के प्रकार, यज्ञों के प्रकार,
प्रक्रिया और पंचतत्वों का विवरण भी इसमें है। यह वेद आध्यात्मिक है। इसमें धार्मिक यात्राओं के
बारे में बताने वाले मंत्र भी हैं। इस वेद की दो शाखा हैं ‘शुक्ल’ और ‘कृष्ण’।
शुक्लः याज्ञवलक्य ऋषि इसके आविष्कर्ता हैं। इसकी दो शाखा वाजसनेय और माध्यंदिन मात्र
वर्तमान में उपलब्ध है। हर एक शाखा म 40 अध्याय है। यज्ञों के वर्णन के साथ इस शाखा में औषधि, कृषि
आदि का विवरण है।
कृष्णः ऋषि वैशंपायन कृष्ण यजुर्वेद के ज्येष्ठाधिकारी है। इसकी चार शाखा मात्र उपलब्ध है।
इसमें तैत्तिरीय शाखा, व्यापक और विस्तृत है।
सामवेद - 1,875 मंत्र वाला यह वेद संगीत के माध्यम से देवताओं की आराधना करने का वेद है। सामवेद का अर्थ परिवर्तन और संगीत, प्रशांतता और आराधना है। सामवेद गीत/संगीत के रूप में है। गायन शास्त्र की उत्पत्ति का मूल सामवेद माना जाता है। इस वेद के 1,875 मंत्रों में से 75 मंत्रों को छोड़कर बाकी सभी मंत्र ऋग्वेद से लिये गए है। सविता, अग्नि, इन्द्र आदि देवताओं का उल्लेख इस वेद में है। इसकी केवल तीन शाखाएं आज उपलब्ध है।
अथर्ववेद - अथर्ववेद युद्ध और शांति का वेद है इसमें 5,977 मंत्र हैं। थर्व यानि स्पंदन, अथर्व यानि नियमितता। जो वेद के आधार पर सन्मार्ग, सद्व्यवहार में निमग्न होगा वह पूर्ण ज्ञान और मोक्ष प्राप्त करेगा, यह वेद अनेक रहस्यमय (गूढ़) विषयों का ज्ञान, वन औषधियों का, महिमाओं का, आयुर्वेद आदि के बारे में बताता है। इसमें 20 अध्यायों में 5,977 मंत्र है। 8 विभागों में भैषज्ञवेद और धातुवेद का विवरण है।
चीन्ना जीयर गुरुजी का मुख्य लक्ष्य विश्व में गरीबों की मदद करना है। गुरुजी का मानना है कि दुनिया में कुछ चिजे हैं जिसपर सबका समान रुप से हक़ है, जैसे- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा। स्वामी जी का मुख्य उद्देश्य दुनिया में शांति और सद्भभावना को बढ़ावा देना है। ऐसे में स्वामी जी सभी जीवित प्राणियों का सम्मान करते हैं। गुरुजी के अनुसार अगर कुछ साझा करना हो तो अहिंसा और खुशियां साझा किया जाए जो सभी के लिए शांति और सद्भाव का कारण बन सके।
विश्व हिन्दू परिषद (VHP) की स्थापना 29 अगस्त 1964 को, श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ दिन पर, भारत के संत शक्ती के आशीर्वाद से हुई थी। (VHP) का उद्देश्य हिन्दू समाज को संगठित करना और उसकी रक्षा करना है। हिंदू धर्म भारत में लाखों गांवों और कस्बों में (VHP) की एक मजबूत, प्रभावी, स्थायी और निरंतर बढ़ती उपस्थिति देखी जाती है।
स्वास्थ्य, शिक्षा, आत्म-सशक्तिकरण, ग्राम शिक्षा मंदिर आदि के क्षेत्र में 58803 से अधिक सेवा परियोजनाओं के माध्यम से (VHP) हिंदू समाज के जमीनी स्तर को मजबूत कर रहा है। अस्पृश्यता जैसी सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के निरंतर प्रयासों के माध्यम से, विहिप हिंदू समाज को अनुपस्थित कर रही है और इसे हिंदू एकता के रूप में व्यक्त करने के लिए कायाकल्प कर रही है।
श्री रामजन्मभूमि, श्री अमरनाथ यात्रा, श्री रामसेतु, श्री गंगा रक्षा, गौ रक्षा, हिंदू मठ-मंदिर का मुद्दा, ईसाई चर्च, हिंदुओं की धार्मिक रूपांतरण, इस्लामी आतंकवाद, बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ आदि मुद्दों को उठाकर, (VHP) साबित हो रहा है। अपने मूल मान्यताओं और पवित्र परंपराओं के संरक्षण के लिए हिंदू समाज की अदम्य शक्ति हो।
इस धार्मिक आयोजन में देश के कोने-कोने से तथा समूचे विश्व के कई गणमान्य व्यक्ति यजमान होंगे। आहुति के लिए पांच यजमानो का प्रत्यके सत्र (प्रातः 9ः00 बजे से दोपहर 12ः00 बजे तक एवं सायं 5ः00 बजे से रात्रि 8ः00 बजे तक) में बैठने का प्रावधान है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प.पू. सरसंघचालक मा. मोहनराव भागवत जी एवं सरकार्यवाह मा. भैय्या जी जोशी भी स्वयं एक सत्र में यजमान बनकर आहुति देंगे।